Saturday 7 July 2012

blog dhauladhar

श्री सुखराज सिन्ह की लिखी अंग्रेज़ी में कविता का हिन्दी में रुपान्तरण
Welcome Storms
Welcome Dark Clouds
Welcome Rains.

Those Farmers gaping towards horizon in search of you,
Have Started Believing in God again.
Come drench us all on earth, take the filth out.
Surrendered !!

स्वागत है तूफानों का 

स्वागत है घन-घोर घनों का

स्वागत है बौछारों का.
वो खेतीहर ताक रहे दिकमण्डल पर फिराक तुम्हारी,

शुरू कर दी प्रतीति रब्ब में दोबारा.

आओ हम सब को सिक्त करो धरा को कचरा-रिक्त करो.

हम अभिभूत!!

Tuesday 10 April 2012

सुकर मना:ह

मुच्‍छड़ - कागज पर पेंसिल से मुदित की रचना 



सुकर मना:ह भई सिर नी फुट्टे, लक्क-लत्तां ई भज्जीयां
मने पतेया:ह मुक्के नी भुक्खे, मिलदीयां रहीयां र:ज्झीयां.

अपणेयां-निप्पणेयां कुतु कजो मिलणा, होई गई गल्ल पुराणी,
बख्त मै:न्गा, कुण टिकटां लै:ह्न्गा, कुनी जहाज्जैं बुकंग कराणी.
रब्ब ते डरां, सुकर करां, अपणे भी:बी ढुकी पौन्दे बड्डीया-चड्डीया.

मकान च्णोई गै, रस्ते संगड़ोई गै, घर-घर खड़ूई गईयां गड्डीयां,
खेत्तर मुक्की गै, नाळू सुक्की गै, पर सड़कां होई गईयां वड्डीयां,
सड़का टप्पणा- मौत्ती सदणा, कुनी भनाणीयां पुराणीयां हड्डीयां.

दाड़ी दा मेल्ला, मा:ह्णुआं दा रेल्ला, कारां कनै कार जुड़ी ग:ईयो,
धक्के पर धक्का, प्रा:ह्लैं धूड़ी दा फक्का, पी:हो-पी:ह पई गई:यो              
भी:बि सुकर मना:ह, अझैं च:लेया साःह, हंडणे जो बच्चीयां कुछ पगडन्डीयां.

Wednesday 7 March 2012

होळी



भ्यागा ते सन्ज्झा तिक्क,
गास्सा ते रुक्खां ’झिक्क’
अढ़ोस्सी नै बोरू जिक्क,
अन्दे तैं रंग- धफरोळी.
हण
नील्ले च लाल पाणा,
गुलाबी रंग बणाणा,
हिक्का ते ईत्तर पाणा,
शब्दां ने देणे घोळी.

तेरा तां बोल बज्जै,
मेरा तां ढोल बज्जै,
नचदा न कोई रज्जै,
ई:ञा मनाणी होळी.

ऎसा कोई रंग चा:ह्ड़ै,
चित्ते दीया लोई उघाड़ै,
मनै दीया मैल्लू राड़ै,
ल्याई दै कोई रंग टोळी.

खेळणी मैं ईञां होळी.
ईञां मनाणी होळी.




Thursday 23 February 2012

सम्‍पाति

"Jatayu-Sampati"Acrylics on stretched Canvas

मैं हूं सम्पाति,
बैठा ऊंचे टीले पर,
बूढ़ी हड्डियों को समेट कर.
इस ताक में ताकि,
कभी तो मिल पायेगी,
मेरे हिस्से की कमाई.

मेरा ही था भाई जटायु,
जो सीता हरण के विरुद्ध
रावण से भिड़ पड़ा था.
कटवा कर पंख अपने,
गिर पड़ा था.
उसे तो स्वयं राम ने
थाम लिया था.
संतप्त हृदय राम ने
सजल नेत्रों से
अपना धाम दिया था.

और मैं सम्पाति,
ठहरा खुरापाति.
उड़ चला आकाश में
सूरज को फांदने.
और गिरा पड़ा हूं तभी से
गले हुये पंख लेकर.
नाक कान आंखें
अभी भी सलामत हैं.
दिखाई दिये जा रहे हैं
रावणों के कारनामे.
सुनाई दिये जा रहें हैं,
गर्त-गत्वा राजनीति के तराने.

जिन्दा हूं  इस उम्मीद पर,
राम आयेंगे मेरे टीले पर.
क्या है कि अभी
भारत के असंख्य वानर
सरकारी टुकड़ों पर पल रहे हैं.
नल-नील अभी क्लासों में पढ़ रहे हैं.
राम भी हैं कच्ची उम्र के
और जुटाने में लगे हैं
दो जून की रोटी.
और उम्र के हिसाब से
कन्धों पर बोझ भारी.

मैं तिल-तिल मर रहा हूं,
बाट जोह रहा हूं राम की,
उनके लिये ही हैं रक्खीं
अपनी आंखें सम्भाल के.
इन आंखों से दिखाऊंगा उन्हें,
रावणों की पनपती बस्ती.

Sunday 19 February 2012

पहाड़ी शब्दावली:


पहाड़ी शब्दावली:
************
जूंगा     :हळे जो ब;हळदां दीया पिट्ठी नै जोड़ने आळा
ल्हाळी :हळे जो सम्भाळने आळी लक्कड़े दी हत्थी
प्रैण :ब:हळदां जो चुंग देणे वास्ते बै:न्जे दी सोठी
मई :लक्कड़े दा भारी फट्टा जिसने बीयां बाहणे ते बाद खेत्रां दी मिट्टी बराबर करदे
दंदाळी :बै:न्जे दा कन्घीनुमा औजार जिसने खेतरे च ते घा-खरपात साफ करदे (दंदाल्टी)
छिक्कड़ा :बै:न्जे दा जाळीदार छक्कू बैलां दे मुंहे चढ़ाई दिन्दे तां जे बौ:ळ्द तां तूं मुंहें नी मारन.
खुण्ड :मजबूत बेळणनुमा लक्कड़ ( गोह्ड्डें गा:हर्नी जमीना च गड्डिया हुंदा जिसने डंगरेयां जो ब:ह्नदे)
बग्गा बैह्ड़ू :गोरे रंगे दा ब:हळद

Friday 17 February 2012

The spare time stuff: celebrating the V-Day

The spare time stuff: celebrating the V-Day: Dedicated to all Singles on the V-Day They do have a strong reason to celebrate. After all they have enjoyed unparalleled fr...

वै० दिने पर छड़ेयां जो छणूका..
***
वै०दिने जो छड़े कैंह नी मनाण ?
इस्दें पिच्छें भी इक बड्डी काण.
तिन्हां मा:रीयां अणमुक्क मौजां,
शहन्शाह अप्पी, कनैं लापरवाह,
अप्पी सब किछ मस्त मलंग,
छड़े भी एह दिन कैंह नी मनाण,
तां ब्याहतेयां जोड़ेयां जो न पौयै भई टुम्ब.

meri Joon


मेरी जून
******
जाह्लू ते मैं होस सम्भाळी, गल्ळैं पईया”जूंगा’,                   
हळैं ही लग्गी रे:आ प्यारेया, मैं तां बौ:ळ्द गूंगा                .                         
इक्सी हत्थैं थम्मी हाळीयें धर्मे दी लक्क्ड़ ’ल्हाळी’,
दूयें हत्थें ’प्रैण’ पकड़ीयो उपदेसां दीयां हुज्जां.
मईयें भी मैं ही जतो:या, मैं ही खिन्जणी ’दंदाळी’.
जुआनैं धानैं भुक्खां मारनीयां मुं:ह्यें लग्गेया ’छिक्कड़ा’,
जे भी खाणा”खुण्डें’ ई मिलणा,घा:-पतरा:हे दा बूज्जा.
थाप्पी देई नै हळैं जोड़ना पटोई गिया मेरा छिक्कड़ा.
हाये वो जानी अपणे ताईं जीणे दा टैम नी लग्गा,
होईया रटैर हण गोड्डे गैर हण ब:हीया ’बैहड़ू बग्गा’.

Tuesday 14 February 2012

churan

Gmail - Compose Mail - tejkumarsethi01@gmail.com:

'via Blog this'मैं चुरान


मैं चुरान, मैं खड्ड चुरान, मेरी सुणा कहाणी,
कुत्थु ते उसरी किञ्या पसरी जुगां जुगां पुराणी.
जिं:ञ्यां शिव-जटां ते उतरी गंगा बणी सुराणी,
तीञ्यां शिवां दीयां अलकां-धौळाधारा दी मैं राणी.
त्रीयूण्डे दे बक्खे ते उगमी थल्लैं आई र:ई चो:ह्लैं,
मस्त मळंगी, छाळीं भरदी, ऊछळी टो:हलैं टो:हलैं.
छू:त्ता भागसुये दा छ:रू:हड़ा होई हऊं पवित्र,
ट:हुये दे द्राड़ैं, पई उच्छाड़ैं, मेरे करतब वचित्र.
कुल्हां मेरियां जाई चेलियां पूज्जी गईयां स्कोहैं,
सग्गैं धान्नां, निकळै सोन्ना,जित्थु मेरा पाणी छो:ऐं.
अक्खैं बक्खैं अणमुक्क ब:हरड़े चुगदे गाईं-डंगरे,
हच्छियां आळीं, मा:रन छाळीं, बच्चे घभरु तगड़े.
हाखीं- फौरीया, पौंदी चोरीया, कन्नैं दिन्दी तोड़ी तान,
बस इक्को बुराई, लई जान्दी रु:ड़ाई क:ड्ढी लैन्दी प्राण.
जाह्लु पौन्दा मुन्ज्जो बौळ तां मैं करदी छ्च्छळ-छौळ,
होई जान्दी तौळ-बतौळ, कन्नैं गा:ही दिन्दी गा:ह्ण.
ईञ्यां धौळिया धारा दी मैं जाई,लोक बोलदे मुन्ज्जो "माई",
पर दिक्खी नै मेरी काण, लोकां रखीता नां "चुरान".
हजारां बीत्ती गये साल, मेरा रिह्या ओहियो ही हाल,
लोक भी खुश हाल, मैं वि नी छड्डी अपणी चाल.
औन्दीयां रहीयां वहारां, कई बदलोई गईयां सरकारां,
भणै आई अन्ग्रेजी सरकार, तिसा नी कीती छेड़-छाड़.
जिञ्यां देश होएया आजाद, मुन्ज्जो आया बड़ा सुआद,
मैं सां- सां गाये गीत, सोचूं पूरी होणी मेरी मुराद.
बखत लगा बदलोणा, डवलप्मैंट लग्गी पई होणा,
सड़कां लगी पईयां खणोणा, मेरे परा:लैं पुळ लग्गे चनॊणा.
मेरे सैळां-पत्थरां लगे खो:ह्णा, कनैं रेता लग्गे ढोणा.
लोक्कां रोक्की लैये समसाण, तित्थु चिणी ते मकान,
मैं तां लगी पई नडरोणा, मेरा तां साह लगा घटोणा.
न तां टो:ह्लां दे रहे नसाण, मेरीयां आळीं पिया सुकाण,
बिहारीयां दीयां झोंपड़-पट्टीयां, भरी ती मैं इन्हां दीयां ट्ट्टीयां,
लाई ते गुं:हासरे दे घड़ग़ार, कनैं प्लास्टके दे अम्भार,
मैं तां रोआ दी डार-डार, हऊं कै:दी धौलाधारा दी राणी?
मैं कै:दी शिवजीयां दीयां अलकां ते उतरी?
मैं कैत पाणा भागसुये दा पाणी?
ह्ण मैं किञ्यां सां- सां गाणा गान?
हण मैं कै:दी रही चुरान?







Thursday 9 February 2012

भेड़ कांड


एक बूढ़ी भेड़ ने बढ़ा लिये बाल,
बैठ गई ऊन्चे आसन पर,
गुरुपद लिया सम्भाल.
धीरे-धीरे जंगल के
जानवर बनने लगे चेले,
चढ़्ने लगे चढ़ावे,
लगने लगे मेले.
दहाड़ते जो शेर थे,
करते थे मनमानियां,
देख कर भक्तों की भीड़,
पड़ गये अकेले.
पाप-पुण्य के प्रवचन
उनके भी कान में पड़े,
पाप-बोध से कान हो गये खड़े.
वे भी व्रत करने लगे,
हरी घास चरने लगे,
भेड़-भक्त-भीड़ में,
सच्ची भेड़ बन गये.
अन्य भेड़ें प्रसाद छकती रहीं,
फलती रहीं, बढ़ती रहीं,
निर्भीक हो गईं,
निर्बिघ्न जंगल में
राज करती रहीं.
और इस इक्कीसवीं शताब्दी में,
घास की त्रासदी में,
मिनिस्टरों ने घास खानी शुरू कर दी.
और भेड़ें के पास
मांस भक्षण के अलावा
कोई रहा चारा न रहा.
और भेड़ें परिवर्तित होने लगीं भेड़ियों में,
तमचे और बम्ब बिकने लगे रेढ़ियों में.
इस तरह भेड़िये
भेड़ों की खाल में,
आ पहुंचे लोकसभा हाल में.