प्हाड़ी ग़ज़ल।
बगते पर
इक कोशिश।
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ताज बगते दा कुसी माफ नीं करदा कदी
जाळ लकीरां दा नी मत्थे ते उतरदा कदी ।
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राम भटके बणैं-बण भर्त जेह्या राजा कदी
रावणैं गैं था क्या नी सै: नी मरदा कदी।
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छाळ समुन्दरैं परैं हड़्मान भरदा कदी।
बगत ही ता था पाणीयैं टोह्ल तरदा कदी।
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रोज रोज नि मरदा जीणे अपणे दे तिंयैं
खरा हुँदा जे देस्से तियैं मरदा कदी।
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हाख वगदी हटी नी चोट रत्ती भर ही थी
हस्सी मळदा पीड़ा हिम्मत करदा कदी।
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डा:डा हुंगा वगत तां रैंह्दा रहो अपणे घरैं
डाँग बजगी ताँ बजणा दैं, मैं नीं डरदा कदी।
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सैंकड़े औतार ज्हाराँ संत आये कवी
माह्णू सुधरेया नि फिरी भी लुभदा कदी।
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चोट बाह्यै ऐब्बी, तोप्पै तिसते इ रमान
फट्टाँ बगते देयाँ जो बगत ही भरदा कदी।
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चुकणे ही हन तां झोळी-चक्काँ जो चुक्क,
झोळी-चक दिक्खया नी कम्म करदा कदी।
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लोक हटदे नीं सराह्न्दे प्हाड़ां बर्फां देयाँ
जीभ सतरोन्दी प्हाड़ सैह्यी खरदा कदी।
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होऐ मूह्न्दा ता भी भरोह्या लगदा घड़ा
घुआड़ी नै बगते जो कुण दिखदा कदी।
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तेज सेठी।
श्यामनगर, धर्मशाला। (हि o प्र o)
Wednesday 30 May 2018
ग़ज़ल
ग़िज़ा दिल को अब तो रूहानी चाहिए।
तार अब रुह की रब से जुड़ानी चाहिए।
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मतलव की बुनियाद पर टिके हुए हैं रिश्ते,
समझ लुट जाने पर तो आ जानी चाहिये।
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काम की बात हो तभी करते हैं लोग बात،
बात उनकी बस अपनी बन जानी चाहिये।
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उसने चिड़िया को पिला दिया क्या पानी,
फ़ोटो अखबार में उसकी तो आनी चाहिए।
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लोक तंत्र बन जाये लीक तंत्र बेशक़,
रकम लीकेज की मोटी जेब मेँ आनी चाहिए।
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देखकर अबके लीडरों की हबस ए इख्तियार,
बिजली तो गिरनी कोई आसमानी चाहिए।
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दिन भर चलती है हीरोइन की खरोंच की खबर,
किसी शहीद की भी तस्वीर दिखानी चाहिए।
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उग आए हैं खेतों में भी सिमेंटी मकान,
अब बचे धान के खेतों को भी पानी चाहिए।
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इक सैलाव फ़ेसबुक पे हकीमों का है आया हुआ,
तस्दीकी उनके लाइसेंसों की भी करानी चाहिए।
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