Friday, 13 May 2016

कन्नाँ धुआई नै चला



कन्नाँ धुआई नै चला।
इस ज़माने दे रंग ढंग 
ठीक  नी 'न लग्गा दे,
कोई छिकड़ा मुंहैं
पर चढ़ाई नै चला।
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कण्डेयां ते पैरां जो
बचाई नै चला।
कण्डेयाँ ते बचणे जो
पाई लैंह्नगे जुट्टे ,
फुल्लां ते भी
जान छुड़ाई नै चला।
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मंदरां च जा:ह्नगे
चढतां चढ़ा:ह्नगे।
भुक्खे जो भी दो ग्राह्
खुआई नै चला।
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वुजुर्गां दे ला:ह्यो अम्ब
झप्फी झणी छड्डे।
गाँह् देयां जो भी
रुख लाई नै चला।
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अंन्हेंयां जो नी सुझै
तुसेहाँक्खीं आळे।
अन्हेंयाँ जो सड़का
लंघाई नै चला।
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दूएं हत्थें देयी गड्डी
रोणा तां अप्पु होया।
अपणी गड्डी अप्पू
चलाई नै चला।
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सिरैं ही चढ़ी औ:ह्ण 
जे बद्दळ गड़कदे।
खरी कीत्ता इन्हां जो
ब:ह्राई नै चला।
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खून इक्क खुदा इक्क
ख्वाहिश इक्क जीणे दी।
नोट इक्क खी:स्से लग
लग पाई नै चला।
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बद्धणे तेह्यी नी हटदा
इच्छां दा पतराह।
सुख लैणा सच्चा ता
इस रड़ाई नै चला।
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बगाड़ने जो पल नै
बणाणे जो उमरां
दुसमणां नैं भी हत्थां
मलाई नै चला।
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ई:ते पै:ह्लैं जे अग्गां
पाई देह्न लियान्ने।
अप्णीयां ही अग्गीं
बुझाई नै चला।
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पै:ह्नीं नै चले:ह्यो
सब रंगदार चश्में।
इन्हां ऐनकां जो
घुआ:ह्यी नै चला।
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जेहड़ी ऊंगळी इसारे
करै दूएयां पास्सें।
तीसा अपणे पास्सें
भी मुड़ाई नै चला।
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बोज्झा ढाई नै चला
मौज्जां लाई नै चला।
अप्णी जिंदड़ी दे भी
सुपने सजाई नै चला।
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