Sunday 25 September 2016

blog dhauladhar: ग़ज़ल 'लिखारिया'

blog dhauladhar: ग़ज़ल

प्हाड़ी पञ्ची 26 सितंबर,2016



सोच्चें जरा तू कुस तिंयें  लिखदा लखारिया।

दुखदी रग जकोंदी, जे तू  जिकदा लखारिया।

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शेयरां खरीदी बेच्ची,   ढिड्ड होयेयो कई मोट्टे।

 पुलन्दा तेरे शेअरां दा, नी बिकदा लखारिया।

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खुन्ड्डा आळे अपणीयाँ, सेक्का दे खरीयां रोटीयां।

तेरा रोट साफ़-सुथरा, कैं:ह् नी सिकदा लखारिया।

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काळजुए दीया सेजळू च, जो शेअर हन स्रहोंदे

 तिन्हां दें सेक्केँ अग्गें,  कुण टिकदा लखारिया।

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इन्हां बजारीयां नी पढ़ने, तेरे शेअर  दे:हे कुराड़े।

एह लिखारियां इ पचाणे,जे तू लिखदा लखारिया।

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 मिल्ले जे लोक सै: भी,  गोळ पैंदे आळे गड़बू।

 पाणा तिन्हां च वी क्या, नी टिकदा लखारिया।

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कई जम्मेयों इस कम्मयों, बस न्हेर इ पाणा आ:ह्यो।

तिन्हां न्हेरेयाँ प्रा:ह्लैं  लोंईं,  तू  लिखदा लखारिया।

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इक्क ता चोर वी चरड़े,  दूआ हुक्म भी 'न करड़े।

दे:ह्याँ सँढरो:ह्याँ मुण्डाँ,  तू जिक्क्दा लखारिया।

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तेरीयां  पैनीयाँ नजराँ,  दीयां फैलीयाँ ऐसीयाँ कदरां।

भदरां तिज्जो सा:ह्यीं,  कुण छिलदा लखारिया।

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तू बीण्डेयाँ जो घड़दा,  कंनैं ठींन्डिया जो पुट्टदा।

जीं:हन्डेयाँ दीयां जड़ां,  तू थिक्कदा लखारिया।

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चढ़ भौंएं गासलिया मंजला , सब तमासगीर हन।

दिक्खेयां नवालड़ीया छत्ती  ते ड़ीकदा लखारिया।

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इस्स चौथेपणे च कुस,  सीस्से गां:ह् खडोणा।

अक्स पिता अपणे दा,   ही लिभदा लखारिया।



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एह ढिल्ले धागे दी पत्त है, बद्धेय्यो प्रभु वी औंदे,

एह प्हाड़ी स्हाड़ी मत्त है, मत खिचदा लखारिया।

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तेजकुमार सेठी, धर्मशाला।

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